गुरु की आज्ञा मिलते ही 15 दिन में 300 किमी का पदविहार कर नेमावर पहुंचे प्रमाणसागरजी

रविवार को 15 साल 8 माह 23 दिन के लंबे इंतजार के बाद मुनिश्री प्रमाणसागरजी और 10 साल 8 माह 23 दिन बाद मुनिश्री विराटसागरजी ने सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर में अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागरजी के दर्शन कर चरण पखारे तो दोनों की आंखों से आंसू बह निकले। अश्रुधारा और जल से दोनों ने अपने गुरु के पादप्रक्षालन किए और गंधोदक को अपने सिरमाथे पर लगाया। दोनों मुनि बावनगजा में चातुर्मासरत थे। गुरु से आज्ञा मिलते ही उनके दर्शन के लिए 15 नवंबर को वहां से लगभग 300 किमी का पदविहार करते हुए रविवार को नेमावर पहुंचे। मुनिश्री प्रमाणसागरजी ने इसके पूर्व 8 मार्च 2004 को रामटेक और मुनिश्री विराटसागरजी ने 8 मार्च 2009 को जबलपुर में गुरु के दर्शन कर उनकी आज्ञा और आशीर्वाद से विहार किया था।
 


विद्यासागजी बोले- दूरभाष, कोरियर या पत्र के बिना हमारा संदेश शिष्य तक पहुंच जाता है
आचार्यश्री विद्यासागजी ने कहा शिष्य अपने गुरु से दूर रहने पर शिकायत करते हैं, लेकिन इन शिकायतों में भी कुछ न कुछ सीख होती है। हम अपना संदेश भेजने के लिए दूरभाष, कोरियर या पत्र का प्रयोग नहीं करते फिर भी हमारे संदेश शिष्यों तक पहुंच जाते हैं। इसके बारे में या तो सिर्फ वो जानते हैं या सिर्फ हम। इससे पूर्व ज्येष्ठ मुनि प्रमाणसागरजी और मुनिश्री विराटसागरजी की आगवानी के लिए आचार्यश्री के संघस्थ मुनि और जनसमुदाय गुराड़ियाफाटे पर पहुंचा। धर्मध्वजा और जयकारों के बीच मुनिगणों की आगवानी हुई। सभी मुनि महाराजों ने आचार्यश्री की परिक्रमा लगाई। यह दृश्य देखकर देश-विदेश के आए हजारों श्रद्धालु भावविभोर हो गए।